.....

Hindi Poems, साँस जाने बोझ कैसे...

साँस जाने बोझ कैसे जीवन का ढोती रही
नयन बिन अश्रु रहे पर ज़िन्दगी रोती रही।

एक नाज़ुक ख्वाब का अन्जाम कुछ ऐसा हुआ
मैं तड़पता रहा इधर वो उस तरफ रोती रही।

भूख , आँसू और गम़ ने उम्र तक पीछा किया
मेहनत के रूख़ पर ज़र्दियाँ , तन पे फटी धोती रही।

उस महल के बिस्तरे पर सोते रहे कुत्ते बिल्लियाँ
धूप में पिछवाड़े एक बच्ची छोटी सोती रही।

आज तो उस माँ ने जैसे तैसे बच्चे सुला दिये
कल की फ़िक्र पर रात भर दामन भिगोती रही।

तंग आकर मुफ़लिसी से खुदखुशी कर ली मगर
दो गज़ कफ़न को लाश उसकी बाट जोहती रही।

`जितमोहन’ बशर की ख्वाहिशों का कद इतना बढ़ गया
ख्व़ाहिशों की भीड़ में कहीं ज़िन्दगी रोती रही।

0 शायरी पसंद आने पर एक टिप्पणी (Comment) जरूर लिखे।:

Post a Comment

Please like this website on facebook

फेसबुक उपयोगकर्ता के लिए टिप्पणी करने हेतु आसान टिप्पणी बॉक्स

  © World Of Hindi Shayari. All rights reserved. Blog Design By: Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP