Zakhm-e Dil Shayari, चाहे वफ़ा में...
चाहे वफ़ा में ठोकरे खाते रहो !
फिर भी रस्म-ऐ-वफ़ा निभाते रहो !!
यही तो इश्क का दस्तूर हैं !
ज़ख्म खाओ फिर भी मुस्कुराते रहे !!
चाहे वफ़ा में ठोकरे खाते रहो !
फिर भी रस्म-ऐ-वफ़ा निभाते रहो !!
यही तो इश्क का दस्तूर हैं !
ज़ख्म खाओ फिर भी मुस्कुराते रहे !!
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