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Mirza Ghalib Shayari - कपड़े बदल - बदल कर..

कपड़े बदल - बदल कर क्या भरोसा है जिंदगानी का,
कपड़े बदल - बदल कर क्या भरोसा है जिंदगानी का,

इंसान बुल-बुला हैं पानी का, जी रहे है कपड़े बदल - बदल कर,
एक दिन, एक कपड़े में ले जायेंगे लोग कंधे बदल - बदल कर।

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