Mirza Ghalib Shayari - वफा कैसी? कहाँ का इश्क?
वफा कैसी? कहाँ का इश्क? जब सर फोड़ना ठहरा,
वफा कैसी? कहाँ का इश्क? जब सर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ऐ संगदिल! तेरा ही संगे-आस्तां क्यों?”
(संगदिल- पत्थरदिल/पाषाणहृदय, संगे-आस्तां- दहलीज का पत्थर/चौखट)
वफा कैसी? कहाँ का इश्क? जब सर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ऐ संगदिल! तेरा ही संगे-आस्तां क्यों?”
(संगदिल- पत्थरदिल/पाषाणहृदय, संगे-आस्तां- दहलीज का पत्थर/चौखट)
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