Mirza Ghalib Shayari - कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना
कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना,
कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना,
है यों, कि मुझको दुर्दे-तहे-ज़ाम बहुत है।
(दुर्दे-तहे-ज़ाम- शराब की प्यालियों में बची हुई शराब/तलछट)
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कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना,
है यों, कि मुझको दुर्दे-तहे-ज़ाम बहुत है।
(दुर्दे-तहे-ज़ाम- शराब की प्यालियों में बची हुई शराब/तलछट)