रीत है जाने यह किस ज़माने की
रीत है जाने यह किस ज़माने की,
जो सज़ा मिलती हैं यहाँ किसी से दिल लगाने की,
ना बसाना किसी को दिल में इतना कि,
फिर दुआ माँगनी पड़े रब से उसे भुलाने की।
जो सज़ा मिलती हैं यहाँ किसी से दिल लगाने की,
ना बसाना किसी को दिल में इतना कि,
फिर दुआ माँगनी पड़े रब से उसे भुलाने की।
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