Zakhm-e Dil Shayari, बस इतने में ही कश्ती...
बस इतने में ही कश्ती डूबा दी हमने !
जहाँ पहुचना था वो किनारा न रहा !!
गिर परते हैं लरखरा के कदमो से !
जो थामा करता था आज वो सहारा न रहा !!
बस इतने में ही कश्ती डूबा दी हमने !
जहाँ पहुचना था वो किनारा न रहा !!
गिर परते हैं लरखरा के कदमो से !
जो थामा करता था आज वो सहारा न रहा !!
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