Zakhm-e Dil Shayari, हँसे हम ये किश्मत को...
हँसे हम ये किश्मत को गवारा नहीं !
कभी हमारे लिए चमके ऐसी कोई तारा नहीं !!
हर वक्त हम कुछ न कुछ खोते रहे...!
क्योकि हम वो पाना चाहते थे जो हमारा नहीं !!
हँसे हम ये किश्मत को गवारा नहीं !
कभी हमारे लिए चमके ऐसी कोई तारा नहीं !!
हर वक्त हम कुछ न कुछ खोते रहे...!
क्योकि हम वो पाना चाहते थे जो हमारा नहीं !!
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