Zakhm-e Dil Shayari, कहाँ से लाऊ हुनर...
कहाँ से लाऊ हुनर उनको मनाने का !
कोई जबाब नहीं था उनके रूठ जाने का !!
मोहब्बत में सजा मुझे ही मिलनी थी...!
क्योकि जुर्म मैंने किया हैं उनसे दिल लगाने का !!
कहाँ से लाऊ हुनर उनको मनाने का !
कोई जबाब नहीं था उनके रूठ जाने का !!
मोहब्बत में सजा मुझे ही मिलनी थी...!
क्योकि जुर्म मैंने किया हैं उनसे दिल लगाने का !!
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