दीदार की आस लगाये बैठा हूँ
कितने अरमानों को दफनाये बैठा हूँ,
कितने ज़ख्मों को दबाये बैठा हूँ,
मिलना मुश्किल है उनसे इस दौर में,
फिर भी दीदार की आस लगाये बैठा हूँ।
कितने ज़ख्मों को दबाये बैठा हूँ,
मिलना मुश्किल है उनसे इस दौर में,
फिर भी दीदार की आस लगाये बैठा हूँ।
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