Mirza Ghalib Shayari - मुद्दत हुई है यार को..
मुद्दत हुई है यार को मेहमां किये हुए
मुद्दत हुई है यार को मेहमां किये हुए
जोश-ए-कदह से बज़्म चिरागां किये हुए।
(मुद्दत- लम्बा समय, जोश-ए-कदह- मदिरा का उबाल, बज्म- महफिल, चिरागां- रौशन)
मुद्दत हुई है यार को मेहमां किये हुए
जोश-ए-कदह से बज़्म चिरागां किये हुए।
(मुद्दत- लम्बा समय, जोश-ए-कदह- मदिरा का उबाल, बज्म- महफिल, चिरागां- रौशन)
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